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हमराहीं वो...

कितनी अजीब बात है ना... कलतक जो अंजाना चेहरा था।

आज वो सबसे प्यारा हो गया

उसे पाने के खातिर दिल दिमाग पागल हो गया

समझ ना आये क्या करू और किस तरह

कहीं छूट ना जाए हाथो से वो रेत की तरह


पास मेरे वो नहीं पर दूरी का एहसास नहीं

राहों के है हमराही वो दो दिन का ये साथ नहीं।


उससे देखने के खातिर हर रोज उससे मिलना

और सूरज के ढलने तक दूर मिलों तक चलना

घर आने पे फोन पे ही लगे रहना

और हर दो बातो के बाद कहना-

"तुमसे ही हैं शादी करना"


पास मेरे वो नहीं पर दूरी का एहसास नहीं

राहों के है हमराही वो दो दिन का ये साथ नहीं ।


रातों में कभी आँखें जो खुले

अपने पास बिस्तर पे हाथ उससे टटोले

पास उससे ना पा के घबरा के जग जाऊ

फिर फोन हाथों में ले उससे कॉल कर जाऊ

आवाज उनकी सुनने से ही इस दिल को सुकून आए

फिर पता नहीं कब लाइन पे ही दोनों की आँखे लग जाए


पास मेरे वो नहीं पर दूरी का एहसास नहीं

राहों के है हमरहीं वो दो दिन का ये साथ नहीं ।


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