रिश्तों में दूरी ....
आज के समय में युवाओं का दोस्त उसका मोबाइल हो गया वो अपना ज्यादातर समय अपनी मोबाइल या लैपटॉप पे बिताते वो अपनी जीवन कि हर छोटी बड़ी चीजे वो सोशल नेटवर्किंग साइट्स पे डालते हैं । इस बीच उसे खुद पता नहीं चल पाता की वो अपने अपनों से कब दूर हो गया है । परिवार के सभी लोग उसके whatsapp ग्रुप में तो होते हैं , पर कभी वो उनसे बात करने की कोशिश नही करते अपनी प्रॉब्लम्स के बारे में डिस्कस नही करते हैं । उससे लगता है वो आपनी प्रॉब्लम्स को खुद ही सॉल्व कर लेगे। और होता भी ऐसा ही हैं ।
आजकल युवाओं के मन में कोई भी सवाल उत्पन्न होती हैं तो वो उसका जवाब ऑनलाइन सर्च करते हैं अपने बड़ो से नहीं पूछते । बच्चे जो घर से बाहर खेलने के लिए जाते थे वो अब मोबाइल पे ही गेम खेलते हैं । घर बाहर निकल कर खेलना तो लगभाग बंदसा हो गया है छुट्टियों में घूमने जाने का प्लान जो पहले परिवार के साथ किसी रिश्तेदारों के घर का होता था अब वो भी बदल गया है अब तो घूमने का प्लान दोस्तो के साथ बनता हैं और वो दूर कोई खूबसूरत घाटी का जहां का दृश्य सुहाना हो जिसको वो जीने ज्यादा कैमरा मे कैद कर सके ऐसी जगह का प्लान बनाते हैं । अभी तो शोलो ट्रिप काफी चलन में हैं । जिसमे वो अकेले ही घुमने जाते है ।
"परिवर्तन प्राकृत का नियम है परंतु परिवर्तन अपने अपनों से दूर कर देता है तो क्या परिवर्तन सही हैं ? आजकल के युवा इंडिपांडेड हो गए हैं वो अपना सही गलत समझते हैं तो क्या वो भी अपनी प्रॉब्लम्स के बारे में अपने अपनों से बात नहीं कर सकते हैं ? दोस्तों के साथ घूमना या अकेले घूमना गलत नही हैं परंतु एक-आक बार आपने रिश्तेदारों से बिना किसी कारण सिर्फ उनसे मिलाना गलत है क्या ?"
दुनिया कितनी भी डिजिटल क्यो ना हो जाए अपने अपनों से दूरी नहीं होनी चाहिए । क्योंकि जब वास्तव में प्रॉब्लम्स आती हैं तो कदम से कदम मिलाए हाथ थामे अपने ही खड़े होते हैं
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